अगर कायदा यही है कि काटों भरे रास्ते पर चलकर ही ताजों को पाया जायेगा, तो विजेताओं की उस कतार में भी सबसे पहला नाम यूफोर्बिया का ही आयेगा; कंटीले बख्तरबंद को पहन, चुपचाप अपने संघर्षों से जूझता एक योद्धा, उसने खुद को स्त्रियोचित ख़ुशबुओं से नहीं सजाया, ना ... उस जैसे कठोर योद्धा पर तो उग्रता ही सजती है, प्रचंड उग्रता। उसने कोमल रंगों को अपना संगी नहीं बनाया, ना ... उस जैसा शूर तो बस वीरता के ही एक रंग में सजीला लगता है।
Raag Bhopali
Apwad the Exception - School Katha
कुछ लोगों को उकेरने के लिए पन्ने के पन्ने कम पड़ जाते हैं, पर अपने लिए तो एक ही शब्द काफी था; एक बेअदब, बेशऊर, बेमतलब सा शब्द, जो लगता था जैसे कतार से छिटक कर बाहर आ गया है; या शायद उसे दूसरे शब्दों ने धकेल बाहर किया हो। बचपन में कहीं पढ़ा था, पर मतलब समझते समझते ज़िंदगी निकल गई, जब लगता कि समझ आ गया, ज़माना राजी ना होता।
उसकी पहली पहल याद अक्तूबर के महीने की है, स्कूल में सहभोज था और सबको टिफिन लाना था, जिसे सबके साथ बैठकर खाया जा सके। टिफिन लाने और खाने जैसा काम तो लड़कियां करती थी, अपने जैसे तीसरी क्लास में पढ़ने वाले मर्द तो गेट के बाहर ठेला लगाए बैठी बाई से बेर का चूरन या कबीट खरीद के खाते थे; सो ३६४ दिन मर्द रहो, और एक दिन के लिए टाटपट्टी पर घेरे में बैठकर बेवकूफी करने को दिल ना माना।
Life of a Book - Yadi Zindagi Kitab Hoti
किताबों की उस दुकान पर जाना अपने आप में एक अलग ही अनुभव है। वैसे, बाहर से वो किताबों की दूकान कम और कोई कार्पोरेट इमारत ज्यादा लगती है। पार्किंग की अच्छी जगह, ऊंची सी इमारत जो दूर तक लंबी चली गयी है, दायें तरफ कोने में, भीतर जाने का एक छोटा सा दरवाजा। लेकिन भीतर जाते ही माहौल एकदम अलग है। हल्की सी ठंडक, सब कुछ एकदम शांत बस ऐसा लगता है जैसे दूर कहीं कुछ हल्का सा संगीत बज रहा है। कुछ लोग किताबों को यहाँ से वहाँ ले जाते हुये। आगे जाकर दायें तरफ एक बड़ा सा केबिन जहां इस पूरी व्यवस्था के संचालक बैठते हैं।
ना जाने क्यों, शायद उनका व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा है कि उन्हे चीफ़ कह कर बुलाना अच्छा लगता है।
उस दिन उनके ग्लास के दरवाजे को ठकठका कर भीतर चला गया।
चीफ़ कुछ पढ़ रहे थे।
"आओ, बैठो। इस बार जल्दी आ गए।" उन्होने अपनी नज़र ऊपर उठा कर कहा।
"इस बार किताब कुछ जल्दी खत्म हो गयी सो जल्दी आ गया, चीफ़।"
"HS-2646374 की किताब कैसी हालत में आई है?" उन्होने किसी से इंटरकॉम पर पूछा, स्पीकर चालू था।
"ठीक ठाक है। कहीं कहीं बिना मतलब कुछ लिख दिया। बाकी ठीक है।" उधर से किसी ने रिपोर्ट दी।
ना जाने क्यों, शायद उनका व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा है कि उन्हे चीफ़ कह कर बुलाना अच्छा लगता है।
उस दिन उनके ग्लास के दरवाजे को ठकठका कर भीतर चला गया।
चीफ़ कुछ पढ़ रहे थे।
"आओ, बैठो। इस बार जल्दी आ गए।" उन्होने अपनी नज़र ऊपर उठा कर कहा।
"इस बार किताब कुछ जल्दी खत्म हो गयी सो जल्दी आ गया, चीफ़।"
"HS-2646374 की किताब कैसी हालत में आई है?" उन्होने किसी से इंटरकॉम पर पूछा, स्पीकर चालू था।
"ठीक ठाक है। कहीं कहीं बिना मतलब कुछ लिख दिया। बाकी ठीक है।" उधर से किसी ने रिपोर्ट दी।
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